Reactions of Amines in hindi ऐमीन की अभिक्रिया क्या है उदाहरण प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक ऐमीन को एक-एक

 ऐमीन की अभिक्रियाऐं (Reactions of Amines)

जल के साथ अभिक्रिया-

सभी प्रकार की ऐमीन जल में घुलकर ऐल्किल अमोनियम हाइड्रॉक्साइड बनाते हैं।

ये ऐमीन हाइड्रॉक्साइड के जलीय विलयन भारी धातु लवणों से उनके हाइड्रॉक्साइड अवक्षेपित कर देते हैं। उदाहरणार्थ-

 लवण का बनाना (क्षारीय प्रकृति)

सभी प्रकार के ऐमीन अम्लों से अभिक्रिया करके संगत लवण बनाते हैं ।

इस अभिक्रिया का उपयोग ऐमीन के अणुभार को ज्ञात करने में करते हैं। अभिक्रिया से प्राप्त हैक्साक्लोरो प्लैटिनेट को छानकर सुखा लेते हैं। इसका दहन करने पर प्लैटिनम धातु बच रहता है। यदि क्लोरोप्लैटिनेट का भार W ग्राम और इससे प्राप्त प्लैटिनम का भार w है तो

अम्लीय प्रकृतिः- प्रबल क्षारीय माध्यम में प्राथमिक द्वितीयक एवं ऐमीन दुर्बल अम्ल के समान व्यवहार दर्शाती है। प्राथमिक तथा द्वितीयक ऐमीन सोडियम से क्रिया कर H2 मुक्त करते हैं।

ऐल्किलीकरण-

सभी प्रकार के ऐमीनों का ऐल्किल हैलाहड के साथ अभिक्रिया से ऐल्किलीकरण हो जाता है। ऐल्किल ऐमीन का ऐल्किल हैलाहइड पर नाभिक स्नेही आक्रमण होता है।

3 ऐमीन ऐल्किल हैलाइड के साथ अभिक्रिया करके चतुष्क अमोनियम लवण बना लेते हैं।

 ऐसिलीकरण-

प्राथमिक (1°) एवं द्वितीयक (20) ऐमीन ऐसिल हैलाइड या अम्ल ऐन्हाइड्राइड के साथ अभिक्रिया करके उनके संगत व्युत्पन्न बनाते हैं। 3° ऐमीन में सक्रिय H – परमाणु नहीं होता अतः इसका ऐसिलिकरण नहीं होता है।

 (ii) बेंजॉयलीकरण-

यदि ऐनिलीन का बैंजॉयलीकरण तनु NaOH की उपस्थिति में सम्पन्न कराते हैं तो अभिक्रिया को शॉटन बोमान अभिक्रिया (Schotten-Baumann’s reaction) कहते हैं।

 सल्फोनीकरण-

प्राथमिक तथा द्वितीयक ऐमीन ऐरोमैटिक सल्फोनिल क्लोराइड के साथ क्षार की उपस्थिति में अभिक्रिया करके संगत प्रतिस्थापित सल्फोनेमाइड बनाते हैं।

 ग्रीन्यार अभिकर्मक के साथ-

प्राथमिक एवं द्वितीयक ऐमीन ग्रीन्यार अभिकर्मक के साथ अभिक्रिया करके ऐल्केन देते हैं।

 नाइट्रोसिल क्लोराइड के साथ-

प्राथमिक एवं द्वितीयक ऐमीन नाइट्रोसिल क्लोराइड के साथ निम्न प्रकार अभिक्रिया करते हैं:

 फेनिल आइसोसायनेट के साथ-

1° एवं 2° ऐमीन फेनिल आइसोसायनेट के साथ अभिक्रिया करके प्रतिस्थापित यूरिया बनाते हैं।

 ऐल्डिहाइड एवं कीटोन के साथ-

(i) प्राथमिक ऐमीन ऐल्डिहाइड एवं कीटोन के साथ अभिक्रिया करने इमीन या शिफ क्षार बनाते हैं। इनमें C= N बंध होता है।

अभिक्रिया की क्रिया विधि के लिए अध्याय 5 में अमोनिया व्युत्पन्नों के साथ ऐल्डिहाइड एवं कीटोन की अभिक्रियाऐं देखें)

(ii) द्वितीयक ऐमीन के साथ वे ऐल्डिहाइड एवं कीटोन जिनमें a-H परमाणु उपस्थित होता है, द्वितीयक ऐमीन के साथ अभिक्रिया करके इनेमीन देते हैं।

(iii) तृतीयक ऐमीन के साथ कोई अभिक्रिया नहीं होती है।

मैनिक अभिक्रिया (Mannich reaction) :- जब प्राथमिक या द्वितीयक ऐमीन की अभिक्रिया किसी सक्रिय हाइड्रोजन परमाणु वाले यौगिक (जैसे कीटोन, B कीटोएस्टर, B- सायनोऐस्टर, नाइट्रोऐल्केन, अथवा 1- ऐल्काइन) तथा फॉर्मेल्डिहाइड के अम्ल अथवा क्षार की

 कार्बनडाइसल्फाइड के साथ (हॉफमैन मस्टर्ड ऑयल अभिक्रिया)-

(i) प्राथमिक ऐमीन कार्बनडाइसल्फाइड के साथ अभिक्रिया करने पर डाइथायोकार्बनिक अम्ल बनाते हैं। जो मर्क्यूरिक क्लोराइड या सिल्वरनाइट्रेट के साथ अभिक्रिया करके आइसोथायोसायनेट देते हैं। यह पूर्ण अभिक्रिया हॉफमान मस्टर्ड ऑयल अभिक्रिया कहलाती है।

(ii) द्वितीयक ऐमीन कार्बनडाइऑक्साइड के साथ डाइथायोकार्बनिक अम्ल बनाते हैं।

(iii) तृतीयक ऐमीन के साथ कोई अभिक्रिया नहीं होती है।

(iv) ऐरोमैटिक ऐमीन ऐल्कोहली कार्बन डाईसल्फाइड के साथ पश्चवाहित आसवन करने पर थायोकार्बेनिलाइड अथवा N, N डाइफेनिल थायोयूरिया देता है।

 हॉफमान कार्बिलेमीन अभिक्रिया-

प्राथमिक ऐमीन क्लोरोफार्म तथा ऐल्कोहॉलिक KOH के साथ गर्म करने पर विशेष दुर्गध युक्त पदार्थ आइसोसायनाइड या कार्बिलऐमीन बनाते हैं। इसे आइसोसायनाइड परीक्षण भी कहते हैं।

 ऑक्सीकरण

(1) प्राथमिक ऐमीन का ऑक्सीकरण (i) प्राथमिक ऐमीन का अम्लीय KMnO से ऑक्सीकरण सुगमता से हो जाता है। -NH2 समूह के 1°, 2° एवं 3° C-परमाणु से जुड़े होने पर भिन्न भिन्न उत्पाद प्राप्त होते हैं।

(ii) प्राथमिक ऐमीन का ऑक्सीकरण परऑक्सी सल्फ्यूरिक अम्ल H2SO5 (कैरो अम्ल) से करने पर बहुत से यौगिकों का मिश्रण प्राप्त होता है।

द्वितीयक ऐमीन का ऑक्सीकरण (i) द्वितीयक ऐमीन का ऑक्सीकरण कैरो अम्ल या पर अम्ल या हाइड्रोजन परॉक्साइड से करने पर N N डाइऐल्किल हाइड्रॉक्सिल ऐमीन बनते हैं।

(ii) यदि ऑक्सीकरण अम्लीय KMnO4 से करें तो N, N – डाइऐल्किल हाइड्रॉक्सिल ऐमीन के साथ टेट्राऐल्किलहाइड्रेजीन भी प्राप्त होते हैं।

तृतीयक ऐमीन का ऑक्सीकरण- तृतीयक ऐमीन का ऑक्सीकरण अम्लीय KMnO4 या हाइड्रोजन परॉक्साइड या पर अम्ल से करने पर तृतीयक ऐमीन ऑक्साइड बनते हैं।

R3N + (O) → R3N O

तृतीयक ऐमीन ऑक्साइड

 ऐमीन की नाइट्रस अम्ल के साथ अभिक्रिया (Rection of Amines with Nitrous acid) नाइट्रस अम्ल एक अस्थायी अम्ल है अतः इसको अभिक्रिया के समय ही ( In situ) बनाया जाता है। इसे अभिक्रिया के समय जलीय सोडियम नाइट्राइट की प्रबल अम्ल के जलीय विलयन के साथ अभिक्रिया द्वारा बनाते हैं।

नाइट्रस अम्ल के साथ सभी प्रकार की ऐमीन अभिक्रिया करती है। अभिक्रिया का उत्पाद ऐमीन की प्रकृति पर निर्भर करता है। प्राथमिक, द्वितीयक तृतीयक ऐलिफैटिक ऐमीन एवं ऐरोमैटिक ऐमीन से भिन्न-भिन्न उत्पाद बनते हैं।

नाइट्रस अम्ल के साथ प्राथमिक ऐमीन की अभिक्रिया-

(i) प्राथमिक ऐलिफैटिक ऐमीन के साथ प्राथमिक ऐलिफैटिक ऐमीन नाइट्रस अम्ल के साथ अभिक्रिया करके उच्च अस्थायी ऐलिफैटिक डाइऐजोनियम लवण बनाते हैं। ये डाइऐजोनियम लवण निम्न ताप पर भी N2 निकाल कर कार्बोधनायन बनाते हैं। ये कार्बोधनायन प्रोटॉन त्यागकर ऐल्कीन, जल से अभिक्रिया करके ऐल्कोहॉल तथा हैलाइड आयन X से अभिक्रिया करके ऐल्किल हैलाइड बना लेते हैं। अतः ऐल्कीन, ऐल्कोहॉल एवं ऐल्किल हैलाहड का मिश्रण प्राप्त हो जाता है।

(ii) प्राथमिक ऐरोमैटिक ऐमीन के साथ अभिक्रिया- प्राथमिक ऐरोमैटिक ऐमीन नाइट्रस अम्ल (0-5°C पर) से अभिक्रिया करके ऐरिल डाइऐजोनियम लवण बनाते हैं। अभिक्रिया को डाइऐजोटीकरण कहते है। अभिक्रिया की क्रियाविधि निम्न प्रकार हैं-

क्रियाविधि (Mechanism) – डाइऐजोटीकरण की क्रियाविधि सम्भवतः निम्न प्रकार होती है-

द्वितीयक ऐमीन की नाइट्रस अम्ल के साथ अभिक्रिया

द्वितीयक ऐलिफैटिक एवं ऐरोमैटिक ऐमीन नाइट्रस अम्ल के साथ अभिक्रिया करके पीले रंग के तैलीय द्रव N नाइट्रोसोऐमीन बनाते हैं।

तृतीयक ऐमीन की नाइट्रस अम्ल के साथ अभिक्रिया-

(i) तृतीयक ऐलिफैटिक ऐमीन के साथ नाइट्रस अम्ल अभिक्रिया करके N-नाइट्रोसो अमोनियम लवण तथा ऐमीन लवण बनाते हैं।

(ii) तृतीयक ऐमीन के साथ नाइट्रस अम्ल की अभिक्रिया से ऐमीन का नाइट्रोसोकरण हो जाता है। नाइट्रोसोकरण p-स्थिति पर होता है यदि p-स्थिति पहले से भरी है तो o- स्थिति पर होता है।

8.14 ऐरिलऐमीन में इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियायें

ऐरिल ऐमीन में इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं का वर्णन करने हेतु ऐनिलीन का उदाहरण लेते हैं। ऐनिलीन में NH2 समूह के नाइट्रोजन परमाणु पर उपस्थित एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म बेंजीन वलय के ग-इलेक्ट्रॉनों के साथ संयुग्मित होकर आंशिक रूप से अस्थानीकृत हो जाता है। इस प्रकार बेंजीन वलय और अधिक ऋणात्मक हो जाती है, जिससे यह इलेक्ट्रॉनस्नेही आक्रमण के लिए सक्रिय हो जाती है। ऐनिलीन में अनुनाद प्रभाव के कारण NH2 समूह के o- और p-स्थितियों पर इलेक्ट्रॉन घनत्व अधिक हो जाता है।

इलेक्ट्रॉन-स्नेही (E) बेंजीन वलय की इन स्थितियों पर उपस्थित कार्बन पर ही आक्रमण करता है। अर्थात् NH2 समूह o-और p-निर्देशक है। इसे निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है।

इलेक्ट्रॉन स्नेही अभिक्रियाओं के कुछ उदाहरण निम्न प्रकार हैं-

(1) हैलोजनीकरण- क्लोरीन जल अथवा ब्रोमीन जल ऐनिलीन से क्रिया करके क्रमशः 2,4,6- ट्राइ क्लोरो अथवा ट्राइब्रोमो उत्पाद बनाते हैं।

(2) नाइट्रीकरण – ऐनिलीन का प्रत्यक्ष रूप से नाइट्रीकरण नहीं किया जा सकता है क्योंकि नाइट्रिक अम्ल से इसका ऑक्सीकरण हो जाता है। सान्द्र HNO3 – H2SO4 के मिश्रण से नाइट्रीकरण पर कुछ मात्रा में m – नाइट्रो ऐनिलीन बनती है। इसकी व्याख्या निम्न प्रकार की जा सकती है क्योंकि ऐनिलीन प्रोटॉन ग्रहण कर ऐनिलीनियम आयन बना देता है।

अतः o- और p-नाइट्रो ऐनिलीन को ऐनिलीन के अप्रत्यक्ष नाइट्रीकरण (-NH2 समूह का रक्षण करके) द्वारा प्राप्त किया जाता है। नाइट्रीकरण के पूर्व NH2 समूह को ऐसीटिल क्लोराइड द्वारा ऐनिलाइड समूह (—NHCOCH3) में बदल लिया जाता है ।

(3) सल्फोनीकरण (Sulphonation ) – ऐनिलीन सधूम सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ क्रिया करके ऐनिलीन हाइड्रोजन सल्फेट बनाता है जिसका 453-473K ताप पर सल्फैनिलिक अम्ल में पुनर्विन्यास हो जाता है।

जब किसी ऐलिफैटिक प्राथमिक ऐमीन की अभिक्रिया सोडियम नाइट्राइट एवं सान्द्र खनिज अम्ल (mineral acid) से की जाती है तो प्राथमिक ऐल्कॉहल प्राप्त होता है एवं नाइट्रोजन गैस निकलती है।

उपरोक्त अभिक्रिया यदि ऐरोमैटिक प्राथमिक ऐमीन से 10°C तापक्रम से ऊपर की जाती है तो समान क्रिया होती है। यदि तापक्रम 10°C से नीचे रखा जाता है तो अभिक्रिया भिन्न होती है जिसमें नाइट्रोजन गैस नहीं निकलती है। एक पानी में घुलनशील यौगिक प्राप्त होता है जिसे डाइऐजोनियम लवण कहते है। अतः सान्द्र HCI या H2SO4 में घुली ऐरोमैटिक प्राथमिक ऐमीन नाइट्रस अम्ल (NaNO2 + HCI अथवा NaNO3 + H2SO4) से 0-5°C पर अभिक्रिया कर जल में घुलनशील डाइऐजोनियम लवण बनाते है। इस अभिक्रिया को “डाइऐजोटीकरण” क्रिया कहते हैं।

ऐरिल डाइऐजोनियम लवणों के संश्लेषणात्मक परिवर्तन

ऐरिल डाइऐजोनियम लवण अत्यन्त क्रियाशील होते हैं इनकी सहायता से अनेक कार्बनिक यौगिक संश्लेषित लिए जा सकते हैं। ऐरोमैटिक डाइऐजोनियम लवणों में बैंजीन वलय की उपस्थिति के कारण अनुनाद होता है जिससे डाइऐजोनियम लवणों का स्थायीकरण हो जाता है।

डाइऐजोनियम लवणों में दो प्रकार की अभिक्रियाएँ होती है।

1. वे अभिक्रियाएँ जिनमें डाइऐजो समूह विस्थापित हो जाता है।

ऐरिलडाइऐजोनियम लवणों का सांश्लेषिक रूपान्तरण इनकी प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं पर आधारित है। इन अभिक्रियाओं में – N2X समूह अन्य समूह के द्वारा प्रतिस्थापित होता है और N2 गैस निकलती है। इसकी प्रतिस्थापन अभिक्रियाऐं निम्न प्रकार हैं-

(1) हाइड्रोजन परमाणु द्वारा प्रतिस्थापन डाइऐजोनियम लवण का विभिन्न अपचायकों द्वारा अपचयन करने पर -NX समूह को हाइड्रोजन परमाणु द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है। इस अभिक्रिया द्वारा – NO2या – NH2 समूह को बैन्जीन वलय से प्रतिस्थापित किया जा सकता है। अतः इस सम्पूर्ण अभिक्रिया को विऐमीनीकरण (deamination) कहते है।

(2) OH समूह द्वारा प्रतिस्थापन डाइऐजोनियम लवण को अम्लीकृत करने के पश्चात् गरम करने पर हाइड्रॉक्सी यौगिक प्राप्त होते है।

(3) हैलोजन द्वारा प्रतिस्थापन –

(i) सैन्डमेयर अभिक्रिया (Sandmeyer’s reaction) – डाइऐजोनियम लवण को क्यूप्रस हैलाइड (Cuprous halide, Cu2 Cl2, Cu2 Br) की उपस्थिति में हैलोजन अम्ल (HCI, HBr ) विलयन के साथ गरम करने पर ऐरिल हैलाइड प्राप्त होते हैं।

सैन्डमेयर अभिक्रिया की सम्भवतः निम्नलिखित क्रियाविधि है –

(ii) गाटरमान अभिक्रिया (Gattermann’s reaction)- इस अभिक्रिया में डाइऐजोनियम लवण को कॉपर चूर्ण एवं HCI या HBr के साथ गरम करने पर संगत ऐरिल हैलाइड प्राप्त होते है ।

(iii) आयोडीन द्वारा प्रतिस्थापन डाइऐजोनियम लवण को जलीय KI विलयन या HI अम्ल के साथ गरम करने पर ऐरिल आयोडाइड प्राप्त होते हैं। ऐरिल नाभिक में आयोडीन परमाणु स्थापित करने की यह उत्तम विधि है।

(iv) फ्लुओरीन (fluorine) द्वारा प्रतिस्थापन बाल्ज-शीमान अभिक्रिया (Balz Schiemann’s reaction) – डाइऐजोनियम समूह को फ्लुओरीन से प्रतिस्थापित करने के लिये इसकी फ्लुओरोबोरिक अम्ल (ठोस बोरिक अम्ल + 50-60% हाइड्रोफ्लुओरिक अम्ल) से अभिक्रिया करते है और इससे प्राप्त डाइजोनियम फ्लुओरोबोरेट को गर्म कर देते हैं।

फ्लुओरो यौगिक निम्नलिखित प्रकार से भी प्राप्त किये जा सकते हैं-

(4) सायनो समूह द्वारा प्रतिस्थापन डाइऐजोनियम लवण को [Cu2(CN)2] क्यूप्रस साइनाइड तथा जलीय पोटैशियम सायनाइड विलयन के साथ या कॉपर चूर्ण की उपस्थिति में जलीय पोटेशियम सायनाइड विलयन के साथ गरम करने पर ऐरिल साइनाइड प्राप्त होते है।

सायनाइड समूह का जल अपघटन करने पर – COOH समूह प्राप्त होता है। अतः अप्रत्यक्ष रूप से – N 2 X समूह को COOH समूह द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है।

(5) नाइट्रो समूह द्वारा प्रतिस्थापन डाइऐजोनियम लवण को क्युप्रस ऑक्साइड की उपस्थिति में नाइट्रस अम्ल (NaNO2 + HCI) के साथ गरम करने पर नाइट्रो यौगिक प्राप्त होते हैं।

नाइट्रो यौगिक प्राप्त करने की एक अन्य विधि निम्न प्रकार है

(6) थायोल समूह द्वारा प्रतिस्थापन डाइऐजोनियम लवण को H2S या पोटैशियम हाइड्रोजन सल्फाइड (KSH) के साथ गरम करने पर – N2X समूह का -SH समूह से प्रतिस्थापन किया जा सकता है।

(7) ऐल्कॉक्सी समूह द्वारा प्रतिस्थापन डाइऐजोनियम लवण को ऐल्कोहॉल के साथ गरम करने पर ऐरिल ईथर प्राप्त होते है।

(8) ऐरिल समूह द्वारा प्रतिस्थापन (गोम्बर्ग अभिक्रिया) डाइऐजोनियम लवण के क्षारीय विलयन को ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन के साथ कॉपर या जिंक की उपस्थिति में गरम किया जाता है तो डाइ ऐरिल प्राप्त होते हैं।

यह गोम्बर्ग अभिक्रिया (Gomberg reaction) कहलाती है।

(9) आइसोसायनेट समूह द्वारा प्रतिस्थापन डाइऐजोनियम लवण को पोटैशियम सायनेट के साथ कॉपर चूर्ण की उपस्थिति में गर्म करने पर ऐरिल आइसोसायनेट बनते है ।

(10) क्लोरोमरक्यूरिक समूह द्वारा प्रतिस्थापन –

(11) आर्सीनिक अम्ल समूह ( – AsO H) द्वारा प्रतिस्थापन (बार्ट अभिक्रिया)- डाइऐजोनियम लवण की सोडियम आर्सिनाइट से कॉपर सल्फेट की उपस्थिति में अभिक्रिया से – N X समूह का आर्सेनिक अम्ल समूह द्वारा प्रतिस्थापन हो जाता है।

 डाइऐजोनियम लवण के उपयोग से कुछ कार्बनिक यौगिकों के संश्लेषण

(i) बेंजीन से 1, 3, 5- ट्राइब्रोमोबेंजीन –

we learn ऐमीन की अभिक्रिया क्या है उदाहरण प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक ऐमीन को एक-एक Reactions of Amines in hindi in detail here above ?


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